अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः ।
अनाशिनोSप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत ।। १८ ।।
अविनाशी, अप्रमेय तथा शाश्र्वत जीव के भौतिक शरीर का अन्त अवश्यम्भावी है । अतः हे भारतवंशी! युद्ध करो ।
गीता सार-श्रीमद् भगवद्गीता-अध्याय-2.18, Geeta Saar-Srimad Bhagavad Gita-2.18पीछे जाएँ | श्रीमद् भगवद्गीता – गीता सार – अध्याय – 2.18 | आगे जाएँ |