विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्र्चरति निःस्पृहः ।
निर्ममो निरहङ्कारः स शान्तिमधिगच्छति ।। ७१ ।।
जिस व्यक्ति ने इन्द्रियतृप्ति की समस्त इच्छाओं का परित्याग कर दिया है, जो इच्छाओं से रहित रहता है और जिसने सारी ममता त्याग दी है तथा अहंकार से रहित है, वही वास्तविक शान्ति प्राप्त कर सकता है ।
गीता सार-श्रीमद् भगवद्गीता-अध्याय-2.71, Geeta Saar-Srimad Bhagavad Gita-2.71पीछे जाएँ | श्रीमद् भगवद्गीता – गीता सार – अध्याय – 2.71 | आगे जाएँ |