अच्छेद्योSयमदाह्योSयमक्लेद्योSशोष्य एव च ।
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोSयं सनातनः ।। २४ ।।
यह आत्मा अखंडित तथा अघुलनशील है । इसे न तो जलाया जा सकता है, न ही सुखाया जा सकता है । यह शाश्र्वत, सर्वव्यापी, अविकारी, स्थिर तथा सदैव एक सा रहने वाला है ।
गीता सार-श्रीमद् भगवद्गीता-अध्याय-2.24, Geeta Saar-Srimad Bhagavad Gita-2.24सर्वगत शब्द महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें कोई संशय नहीं है कि जीव भगवान् की समग्र सृष्टि में फैले हुए हैं । वे जल, थल, वायु, पृथ्वी के भीतर तथा अग्नि के भीतर भी रहते हैं । जो यह मानता हैं कि वे अग्नि में स्वाहा हो जाते हैं वह ठीक नहीं है क्योंकि यहाँ कहा गया है कि आत्मा को अग्नि द्वारा जलाया नहीं जा सकता । अतः इसमें सन्देह नहीं कि सूर्यलोक में भी उपयुक्त प्राणी निवास करते हैं । यदि सूर्यलोक निर्जन हो तो सर्वगत शब्द निरर्थक हो जाता है ।गीता सार-श्रीमद् भगवद्गीता-अध्याय-2.24, Geeta Saar-Srimad Bhagavad Gita-2.24
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