मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।
अगामापायिनोSनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।। १४।।
हे कुन्तीपुत्र! सुख तथा दुख का क्षणिक उदय तथा कालक्रम में उनका अन्तर्धान होना सर्दी तथा गर्मी की ऋतुओं के आने जाने के समान है। हे भरतवंशी! वे इन्द्रियबोध से उत्पन्न होते हैं और मनुष्य को चाहिए कि अविचल भाव से उनको सहन करना सीखे।
गीता सार-श्रीमद् भगवद्गीता-अध्याय-2.14, Geeta Saar-Srimad Bhagavad Gita-2.14अर्जुन को जिन दो नामों से सम्भोधित किया गया है, वे भी महत्त्वपूर्ण जैन। कौन्तेय कहकर संबोधित करने से यह प्रकट होता है कि वह अपनी माता की और (मातृकुल) से सम्बंधित है और भारत कहने से उसके पिता की और (पितृकुल) से सम्बन्ध प्रकट होता है। दोनों और से उसको महान विरासत प्राप्त है। महान विरासत प्राप्त होने के फलस्वरूप कर्तव्यनिर्वाह का उत्तरदायित्व आ पड़ता है, अतः अर्जुन युद्ध से विमुख नहीं हो सकता।गीता सार-श्रीमद् भगवद्गीता-अध्याय-2.14, Geeta Saar-Srimad Bhagavad Gita-2.14
पीछे जाएँ | श्रीमद् भगवद्गीता – गीता सार – अध्याय – 2.14 | आगे जाएँ |