श्रीभगवानुवाच
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्र्च भाषसे।
गतासूनगतासूंश्र्च नानुशोचन्ति पण्डिताः।। ११।।
श्री भगवान् ने कहा – तुम पाण्डित्यपूर्ण वचन कहते हुए उनके लिए शोक कर रहे हो जो शोक करने योग्य नहीं है। जो विद्वान होते हैं, वे न तो जीवित के लिए, न ही मृत के लिए शोक करते हैं।
गीता सार-श्रीमद् भगवद्गीता-अध्याय-2.11, Geeta Saar-Srimad Bhagavad Gita-2.11पीछे जाएँ | श्रीमद् भगवद्गीता – गीता सार – अध्याय – 2.11 | आगे जाएँ |