त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन ।
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् ।। ४५ ।।
वेदों में मुख्यतया प्रकृति के तीनों गुणों का वर्णन हुआ है । हे अर्जुन! इन तीनों गुणों से ऊपर उठो । समस्त द्वैतों और लाभ तथा सुरक्षा की सारी चिन्ताओं से मुक्त होकर आत्म-परायण बनो ।
गीता सार-श्रीमद् भगवद्गीता-अध्याय-2.45, Geeta Saar-Srimad Bhagavad Gita-2.45जब तक भौतिक शरीर का अस्तित्व है तब तक भौतिक गुणों की क्रियाएँ-प्रतिक्रियाएँ होती रहती हैं । मनुष्य को चाहिए कि सुख-दुख या शीत-ग्रीष्म जैसी द्वैतताओं को सहन करना सीखे और इस प्रकार हानि तथा लाभ की चिन्ता से मुक्त हो जाय । जब मनुष्य कृष्ण की इच्छा पर पूर्णतया आश्रित रहता है तो यह दिव्य अवस्था प्राप्त होती है ।गीता सार-श्रीमद् भगवद्गीता-अध्याय-2.45, Geeta Saar-Srimad Bhagavad Gita-2.45
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