जातस्य हि ध्रुवो मृत्युध्रुवं जन्म मृतस्य च ।
तस्मादपरिहार्येSर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ।। २७ ।।
जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और मृत्यु के पश्चात् पुनर्जन्म भी निश्चित है । अतः अपने अपरिहार्य कर्तव्यपालन में तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए ।
गीता सार-श्रीमद् भगवद्गीता-अध्याय-2.27, Geeta Saar-Srimad Bhagavad Gita-2.27कुरुक्षेत्र का युद्ध भगवान् की इच्छा होने के कारण अपरिहार्य था और सत्य के लिए युद्ध करना क्षत्रिय काधर्म है । अतः अपने कर्तव्य का पालन करते हुए वह स्वजनों की मृत्यु से भयभीत या शोककुल क्यों था? वह विधि (कानून) को भंग नहीं करना चाहता था क्योंकि ऐसा करने पर उसे उन पापकर्मों के फल भोगने पड़ेंगे जिनमे वह अत्यन्त भयभीत था । अपने कर्तव्य का पालन करते हुए वह स्वजनों की मृत्यु को रोक नहीं सकता था और यदि वह अनुचित कर्तव्य-पथ का चुनाव करे, तो उसे निचे गिरना होगा ।गीता सार-श्रीमद् भगवद्गीता-अध्याय-2.27, Geeta Saar-Srimad Bhagavad Gita-2.27
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