एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति ।
स्थित्वास्यामन्तकालेSपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति ।। ७२ ।।
यह आध्यात्मिक तथा ईश्र्वरीय जीवन का पथ है, जिसे प्राप्त करके मनुष्य मोहित नहीं होता । यदि कोई जीवन के अन्तिम समय में भी इस तरह स्थित हो, तो वह भगवद्धाम को प्राप्त होता है ।
गीता सार-श्रीमद् भगवद्गीता-अध्याय-2.72, Geeta Saar-Srimad Bhagavad Gita-2.72ब्रह्म और भौतिक पदार्थ एक दूसरे से सर्वथा विपरीत हैं । अतः ब्राह्मी-स्थिति का अर्थ है, “भौतिक कार्यों के पद पर न होना ।” भगवद्गीता में भगवद्भक्ति को मुक्त अवस्था माना गया है (स गुनान्समतीत्यैतान् ब्रह्मभूयाय कल्पते) । अतः ब्राह्मी-स्थिति भौतिक बन्धन से मुक्ति है ।
श्रील भक्ति विनोद ठाकुर के इस द्वितीय अध्याय को सम्पूर्ण ग्रंथ के प्रतिपाद्य विषय के रूप में संक्षिप्त किया है । भगवद्गीता के प्रतिपाद्य हैं – कर्मयोग, ज्ञानयोग तथा भक्तियोग । इस द्वितीय अध्याय में कर्मयोग तथा ज्ञानयोग की स्पष्ट व्याख्या हुई है एवं भक्तियोग की भी झाँकी दे दी गई है ।
इस प्रकार श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय “गीता का सार” का भक्तिवेदान्त तात्पर्य पूर्ण हुआ ।गीता सार-श्रीमद् भगवद्गीता-अध्याय-2.72, Geeta Saar-Srimad Bhagavad Gita-2.72
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