तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः ।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ।। ६८ ।।
अतः हे महाबाहु! जिस पुरुष की इन्द्रियाँ अपने-अपने विषयों से सब प्रकार से विरत होकर उसके वश में हैं, उसी की बुद्धि निस्सन्देह स्थिर है ।
गीता सार-श्रीमद् भगवद्गीता-अध्याय-2.68, Geeta Saar-Srimad Bhagavad Gita-2.68पीछे जाएँ | श्रीमद् भगवद्गीता – गीता सार – अध्याय – 2.68 | आगे जाएँ |