दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः ।
वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते ।। ५६ ।।
जो त्रय तापों के होने पर भी मन में विचलित नहीं होता अथवा सुख में प्रसन्न नहीं होता और जो आसक्ति, भय तथा क्रोध से मुक्त है, वह स्थिर मन वाला मुनि कहलाता है ।
गीता सार-श्रीमद् भगवद्गीता-अध्याय-2.56, Geeta Saar-Srimad Bhagavad Gita-2.56पीछे जाएँ | श्रीमद् भगवद्गीता – गीता सार – अध्याय – 2.56 | आगे जाएँ |